पंचांग भेद को लेकर इन्दौर में 28 दिसंबर, 2019 को एक बार फिर 90 वर्ष बाद यह अवसर आया है कि पंचांग निर्माणकर्ता, देवज्ञ यह स्वीकार कर रहे हैं कि जगद्गुरु शंकराचार्य धर्म के प्रधान हैं। कायदे से धर्मशास्त्र अनुसार वे जो राय देंगे वह हमें मान्य होगी। उनकी राय सभी को मानना भी चाहिए। दो तिथि, दो पर्व, दो व्रत, दो उत्सव को लेकर अर्से से चर्चा है। इस संबंध में इन्दौर की श्री परशुराम महासभा के पं. वीरेन्द्र शर्मा की पहल पर पं. विजय अडीचवाल ने शारदापीठ के जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंदजी सरस्वती से भोपाल में चर्चा की तो उनका स्पष्ट मत था कि अलग-अलग सम्प्रदाय के मत धर्मावलम्बियों के कारण ही अलग-अलग तिथि पर्व व्रत हो रहे हैं। कोई तिथि से पर्व मानते हैं तो कोई नक्षत्र से मानते हैं। जब तक सभी मतों को मानने वाले एक मत नहीं होंगे तब तक यह विवाद चलता रहेगा। वैष्णव मत को अधिक मानने वाले सूर्य सिद्धांत अनुसार गणना करने वाले पंचांगों के अनुसार गणित की गणना करें तो पंचांगों में एकरूपता हो जाएगी। देशकालिक पर्व एक ही होना चाहिए। शंकराचार्यजी ने परशुराम महासभा के प्रयासों की सराहना की और कार्यक्रम के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त की। उन्होंने कहा कि ब्राह्मण सभी समाज के लिए जीता है। वर्तमान में स्थिति विकृत हो रही है। समय पर यज्ञोपवीत नहीं हो रहे हैं। ब्राह्मण पहनावे में अपना स्वरूप नही रख पा रहे हैं। वे स्वाभिमान बरकरार रखें। बच्चों को अधिक से अधिक संस्कृति की शिक्षा दी जाए। माता-पिता बच्चों को विदेश भेज रहे हैं। उन्हें सुसंस्कार नहीं दे रहे हैं। सुसंस्कारित रहना है तो अपने पूर्वजों के संस्कारों का अनुसरण करना चाहिए। ब्राह्मण वर्ग के बच्चों को संस्कृत की शिक्षा लेना चाहिए। सूरज (गुजरात) में ब्राह्मण समाज के सम्मेलन में मैं गया था तो वहां कुछ लोगों ने कहा आप तो सभी जाति वर्ग के जगद्गुरु शंकराचार्य हैं तो मैंने कहा हां... मैं सभी का हूं। ब्राह्मण का भी हूं। ब्राह्मण ही सभी जाति वर्ग का मार्गदर्शक हैं। ब्राह्मण ही सम्पूर्ण समाज के लिए जीता है। उन्होंने कार्यक्रम में आने की मौखिक स्वीकृति भी प्रदान की थी। उज्जैन से 123 वर्ष से सतत् नारायण विजय पंचांग तथा महाकाल पंचांग 97 वर्ष से प्रकाशित हो रहा है। देश में दो तिथि, दो पर्व, दो व्रत, दो उत्सव को लेकर जब ज्योतिष भूषण पं. आनंद शंकर व्यास से चर्चा की तो उन्होंने कहा कि पंचांग भेद का निराकरण सरलता से नहीं हो सकता। नवयुग और प्राच्य पक्ष में मतभेद हैं। तिलक पक्ष व केतकी पक्ष में मतभेद थे। 1961 में हुए सम्मेलन में रैवत पक्ष को शुद्ध माना गया था। केतकी पक्ष चित्रा को अशुद्ध माना गया थापहले देश के विद्वान सिद्धांत की रचना कर बहस करते थे, तब कहीं निर्णय होता था। मघा-चित्रा नक्षत्र के मान से अयनांश निकालने की पद्धति गलत है, उसे शास्त्र सम्मत नहीं माना गया। तिलक पक्ष और केतकी पक्ष में चार दिन का अन्तर संक्रांति में आता था, किन्तु यह व्यावहारिक में नहीं आ सकता था। इसलिए इसे नहीं माना गया। हालांकि सिद्धांत सही था। चित्रा पक्ष, प्राचीन सूर्य सिद्धांत ग्रह लाघव उस समय लगभग बराबर थे तो चित्रा पक्ष प्रचलन में आ गया। चित्रा पक्ष गणित से ही अब पंचांग बनने लगे हैं। कारण उन्हें गणित नहीं करना पड़ता है। सायन ग्रह तैयार मिलते हैं।
परशुराम महासभा के नो प्रस्ताव पारित
परशुराम महासभा के समापन सत्र में हजारों विद्वतजनों की उपस्थिति में रखे गए 9 प्रस्ताव ध्वनि मत से पारित किए गए। प्रस्ताव इस प्रकार हैं
1. पंचांग में तिथियों, पर्व की मत भिन्नता के लिए जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती से समाधान खोजने का आग्रह करना।
2. ब्राह्मण समाज में मृत्यु भोज प्रथा पूरी तरह समाप्त करना ।
3. पिता की मृत्यु पर पगड़ी सिर्फ एक ही होना।
4. मामूली विवादों से परिवारों को टूटने और बिखरने से बचाने के लिए सामाजिक पंचायतों द्वारा मध्यस्थता करना।
5. समाज में होने वाले उठावनों के दौरान मंदिर जाने की प्रथा बंद करना । शोक बैठक ही करने का निर्णय मान्य किया जाए।
6. प्रत्येक परिवार अपने बच्चों को संस्कार , संस्कृति एवं संस्कृत की शिक्षा अनिवार्य रूप से देने का निर्णय ।
7. इंदौर में शिक्षा हेतु बाहर से आने वाली ब्राह्मण बेटियों के लिए सुरक्षायुक्त ग हॉस्टल का निर्माण करना।
8. गौ संवर्धन हेतु अंतिम संस्कार में लकड़ी के स्थान पर गाय के गोबर से बने कंडों से करने का निर्णय। पर्यावरण संरक्षण हेतु प्लास्टिक डिस्पोजल के बहिष्कार का निर्णय।
9. परशुराम प्रकट भूमि जानापाव को राज्य सरकार से ब्रह्म तीर्थ घोषित करवाना।