- काशी में सबसे पहले दण्डपाणि गणेश का पूजन करने के बाद ही विश्वेश्वर भगवान का पूजन करने का महत्व है
- काशी को वाराणसी, रुद्रवास, महाश्मशान, आनंदवन तथा बनारस कहते हैं।
- महाभारत के अनुशासन वर्ष व शांति पर्व में ब्राह्मणों की महिमा का विस्तार से वर्णन है।
- सहस्रार्जुन को दत्तात्रयजी से वरदान मिला था कि सिर्फ युद्ध के समय उनकी हजार भुजाएं होंगी। सामान्य रूप से उसकी सिर्फ दो भुजाएं थीं।
- भगवान श्रीकृष्ण देवताओं के देवता होकर भी वेदों का अध्ययन और प्राचीन विधियों का पालन करते हैं।
- सर्वप्रथम सृष्टि में जल की उत्पत्ति हुई।
- ब्राह्मणों के राजा चन्द्रमा है। इसलिए इहलोक और परलोक में भी ब्राह्मण सुख-दुख का वरदान व शाप देने में समर्थ होते हैं।
- जब सारे तर्क समाप्त हो जाते हैं तभी उत्तम ज्ञान की प्राप्ति होती है।
- परशुरामजी ने जब पृथ्वी कश्यपजी को दान की तब उन्होंने परशुरामजी से कहा तुम दक्षिण समुद्र के किनारे चले जाओ, अब मेरे राज्य में कभी निवास नहीं करना।
- परशुरामजी चले गए। समुद्र ने उनके लिए जगह खाली कर दी। यह क्षेत्र शूर्पारक देश के नाम से जाना जाता है। इसे अपरांत भूमि भी कहते हैं।
- भीष्म पितामह कुरु क्षेत्र के निकट ओघवती नदी के तट पर शरशैया पर लेटे थे।
- उस काल में भीष्म पितामाह जैसा सत्यवादी, धर्मपारायण, शूरवीर तथा महापराक्रमी नहीं था, जो शैय्या पर सोकर भी मौत को रोकने में सफल हो।
- महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद भीष्म पितामह 56 दिन तक शैय्या पर रहे। शरशैय्या पर लेटे हुए भीष्म पितमाह ने युधिष्ठिर को जो ज्ञान दिया था वह वैदिक सिद्धांत की भांति इस भूमंडल पर मान्य है।
- प्रथम ब्रह्म सृष्टि के प्रथम सतयुग में सर्वप्रथम ब्रह्माजी ने एक लाख अध्याय के 'नीति शास्त्र' की रचना की थी। प्राणियों की घटती आयु देखकर उक्त नीति शास्त्र के अध्याय को घटा दिए गए।
- भगवान विष्णु से 8वीं पीढ़ी में वेनपुत्र महाराज पृथु हुएमहाराजा पृथु जब समुद्र में होकर चलते थे, तब समुद्र का जलस्थिर हो जाता थामहाराज पृथु ने पृथ्वी से 17 प्रकार के धान्य दुहे थे। पृथु ने प्रजा का रंजन किया था इसलिए वे 'राजा' नाम से विख्यात हुए, तब से ही प्रजा पालनकर्ता को 'राजा' कहने लगी
- ब्रह्माजी द्वारा रचित नीति शास्त्र में तीर्थों के वंश, महर्षियों की उत्पत्ति, नक्षत्रों के वंश, चार प्रकार के होत्रकर्म, चार वर्ण, चार प्रकार की विधा, इतिहास, वेद, न्याय, तप, ज्ञान, अहिंसा, सत्य, असत्य, दान, सेवा, शौच, सजगता, दया आदि विषयों का वर्णन है।
- हिमालय पर्वत के एक शिखर पर मुंजपृष्ठ है। यहां मुंजावट के नीचे भगवान परशुरामजी ने अपनी जटाएं बांधी थीं, तभी से ऋषियों ने उसका नाम 'मुंजपृष्ठ' रख दिया था
- मुंजपृष्ठ स्थान पर ही भगवान शंकर का निवास इस 'मुंजपृष्ठ' स्थान पर अंगदेश के राजा वसुहोम ने वेदोक्त गुणों को अपनाया था, जिससे वे देवर्षि तुल्य हो गए थे।
- भगवान शंकर ने जब सर्वप्रथम देवताओं का राजा इन्द्र को बनाया था तब उसी समय वशिष्ठजी को ब्राह्मणों का राजा बनाया था।
- पारियात्र नामक पर्वत पर गौतम ऋषि ने 60 हजार वर्ष तक तप किया था। महाराजा इक्ष्वाकु सतयुग में हुए थे। उनके सौ पुत्र थे। उन्होंने सभी सौ पुत्रों को पृथ्वी का राजा बनाया था।
- महाराजा मरुत्त ने हिमालय के उत्तरी भाग में मेरू पर्वत के पास बहुत अधिक सुवर्ण रखा था। उसे ही सुवर्ण पर्वत कहते हैं।
- महर्षि अंगिरा के दो पुत्र हैं- बृहस्पति व संवर्त मुनि
- हिमालय के पृष्ठ भाग में मुंजवान पर्वत पर शंकरजी हमेशा तपस्या करते रहते हैं।
- मुंजवान पर्वत पर न अधिक गरमी पड़ती है न विशेष ठंड। उस पर्वत पर किसी को भूख प्यास नहीं लगती है और न बुढ़ापा आता है, न मृत्युमुंजवान पर्वत की रक्षा गंधर्व करते हैं, यानि वह कुबेर का खजाना है।
- महाभारत के आश्वमेधिक पर्व में भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को समझाते हुए 'काम गीता' के नाम से प्रसिद्ध एक प्राचीन गाथा का वर्णन किया था।
- महर्षि उत्तंक ऋषि महर्षि गौतम के शिष्य थे। उत्तंक ऋषि के आग्रह पर भगवान कृष्ण ने मरुभूमि में समय-समय पर जल वर्षा उपलब्ध होने का वरदान दिया था।
- तब से ही मरुभूमि (रेगिस्तान) में उत्तंक नाम वाले मेघ बारिश करते हैं।
- महाभारत युद्ध में जहां कौरव सेना के सेनापति भीष्म पितामह थे, वहीं पांडव सेना के सेनापति शिखंडी थे। इन दोनों सेनापतियों के नेतृत्व में 10 दिन युद्ध हुआ।
- महाभारत युद्ध में द्रोणाचार्य सेनापति थे, तब पांडव की सेना के सेनापति धृष्टधुम्न थे। इन दोनों सेनापति के नेतृत्व में 5 दिन युद्ध हुआ। अर्जुन-कर्ण का युद्ध दो दिन हुआ। शल्य - युधिष्ठिर का युद्ध आधा दिन हुआ। उसी दिन सहदेव ने शकुनि का वध कर दिया था। युद्ध समाप्त होने के बाद विदुरजी व दूरदृष्टा संजय भी पांडवों के आश्रय में आ गए थे।