विद्वान ही मिटा सकते हैं पंचांग भेद

इदौर में 90 वर्ष बाद पंचांग मतभिन्नता को लेकर विराट चिंतन २ का आयोजन हुआ। देश के सबसे प्राचीन पंचांग निर्माताओं के उत्तराधिकारी ज्योतिष भूषण पं. आनंदशंकर व्यास के मुख्य आतिथ्य में ब्राह्मण महाकुंभ 28 दिसंबर को संपन्न हुआ । परशुराम महासभा द्वारा आयोजित महा सम्मेलन में पंचांगों की भिन्नताओं पर गंभीर रूप से विद्वतजनों ने चिंतन किया। सारभूत - अलग-अलग शहरों में सूर्योदय का समय अलग - अलग होता है। सभी शहरों से पंचांगों का प्रकाशन भी असंभव है। अतः क्षेत्र अनुसार जिन पंचांगों का प्रकाशन होता है उनमें सभी शहरों - क्षेत्रों के सूर्योदय का उल्लेख होता है। विद्वान जिस शहर क्षेत्र में स्थित हैं - उन्हें गणना कर सूर्योदय स्पष्ट करना होगा । ऐसी स्थिति में जो गणना करने में असमर्थ हैं, वहां कठिनाइयां उत्पन्न होगी । विद्वानों ने पंचांग निर्माताओं से आग्रह किया है कि वे क्षेत्रीय स्तर पर गणना कर पंचांगों का निर्माण करें - जैसे नीमच से प्रकाशित होने वाला निर्णय सागर पंचांग का प्रकाशन जोधपुर को आधारित मानकर किया जाता है । ऐसे में यह पंचांग मालवा - निमाड़ क्षेत्र में तभी समझ में आएगा जब इसमें उल्लेखित शहरों के सूर्योदय की गणना करना होगी । जबकि इस पंचांग में अलग-अलग शहरों के सूर्योदय प्रकाशित किए गए हैं। सामान्य जन के लिए गणना कर पंचांग का वाचन करना एक कठिन प्रक्रिया है । इसलिए पंचांग निर्माताओं से विनम्र आग्रह किया गया है कि वे संवत् 2078 के पंचांग के दो अलग-अलग संस्करण प्रकाशित करें - एक जोधपुर का जो यथावत है ही, दूसरा उज्जैन को आधारित मानकर पंचांग का प्रकाशन करें, ताकि मालवा - निमाड़ की जनता भी आसानी से समझ कर पंचांग का उपयोग कर सकें । इसी प्रकार उज्जैन से प्रकाशित होने वाले श्री महाकाल तथा नारायण विजय पंचांग के निर्माता पं. आनंदशंकर जी व्यास से विनम्र आग्रह किया गया है कि पंचांग को और अधिक सरल बनाएं। घटी पल को घंटा मिनट में भी प्रकाशित करें । पं. व्यास ने विश्वास दिलाया कि संवत् 2078 से संशोधन करने का प्रयास किया जाएगा । विद्वतजनों ने अपने - अपने विचार व्यक्त किए कि उज्जैन पृथ्वी की कालगणना का महत्वपूर्ण केंद्र है । यदि उज्जैन को ही मध्यमोदय मानकर स्टैंडर्ड टाइम की गणना कर पंचांगों का निर्माण हो तो ही राष्ट्रीय पंचांग का निर्माण हो सकता है, जो पूरे भारत देश में एक समान होगा। इससे उत्पन्न हो रहा भ्रम भी दूर होगा । भारत विराट देश है । पूर्व - पश्चिम के शहरों के सूर्योदय में एक घंटा 40 मिनट का अंतर तथा उत्तर - दक्षिण के शहरों में करीब 23 मिनट का अंतर सूर्य उदय में आता है। साथ ही लगभग सभी प्राचीन आर्ष तथा आधनिक सायन पर आधारित सिद्धांतों के अनुसार पंचांगों का निर्माण करते हैं। कोई सूर्य सिद्धांत, ब्राह्मस्फुट सिद्धांत एवं ग्रहलाघव, मकरंद सारणियों से पंचांग बनाते हैं तो कोई आधुनिक सिद्धांतों से पंचांगों का प्रकाशन करते हैं। कंप्यूटर युग में कुछ ऐसे पंचांगों का भी प्रकाशन होने लगा है जो सिर्फ नकल पर आधारित हैं। यह एक बड़ा व्यवसाय बन गया है। विद्वतजनों के लिए यह एक बड़ी चुनौती भी है कि नकली तथाकथित पंचांग निर्माताओं से कैसे निपटा जा सके ? विभिन्न पंचांगों के भेद के कारण दो तिथि, दो पर्व, दो व्रत , दो उत्सव होने का भ्रम उत्पन्न होने लगा है। इससे समस्त जाति - समाज वाले ब्राह्मणों पर प्रश्न खड़े करने लगे हैं। ब्राह्मण समस्त मानव जाति का मार्गदर्शक है। विद्वान ब्राह्मणों के सान्निध्य में ही धार्मिक अनुष्ठान संपन्न होते हैं । मुहूर्त, तिथि, व्रत, पर्व, उत्सव आदि मनाए जाते हैं। भ्रम की स्थिति से सामान्यजन भी भ्रमित हो रहे हैं।


आजकल सोशल मीडिया , प्रिंट मीडिया पर भी कंप्यूटर आधारित पंचांगों का बोलबाला अधिक होने लगा है। यह स्थिति भी विकट होती जा रही है। इन सबसे निपटना जरूरी हो गया है। असली पंचांग निर्माताओं को संगठित होना होगा, तभी वे नकली पंचांग निर्माताओं से निपट सकेंगे। इसी तरह मनमाने ढंग से सूर्य उदय और मनमाने ढंग से स्टैंडर्ड टाइम के आधार पर बनने वाले पंचांगों पर लगाम विद्वतजन ही लगा सकेंगे। साथ ही आर एन आई में कितने पंचांग पंजीयत हैं, यह भी देखना होगा, ताकि बिना पंजीयत प्रकाशित होने वाले नकली पंचांगों के प्रकाशन पर रोक लग सके । इसके लिए हर बड़े शहरों में 5 या 11 विद्वतजनों की एक - एक समिति गठित होना चाहिए, ताकि वे निगरानी के साथ-साथ पंचांग निर्माताओं से संपर्क में रहकर विचार विमर्श करते रहें । इससे तिथियों, पर्व, व्रत, उत्सव के दो-दो होने वाली स्थिति निर्मित नहीं हो पाएगी। इसके लिए विद्वतजनों को ही आगे आना होगा, तभी यह संभव है।